जिम्मेदारियां

ये जिंदगी कैसी अठखेलियाँ करती है कि ख्वाब भी हमें सच्चे लगते हैं ये उन दरवाज़ों को खोलती हैं जिसपे सदियों से ताले पड़े हैं पर अब लगता है मुझे…

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वक्त और मैं

जीवित रहने की कोशिश में, मुर्दों सा ही जला गया मैं। अपनों के हाथों से अक्सर, वक्त वक्त पे छला गया मैं। सबको मैंने अपना माना, गाली देता रहा ज़माना।…

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ग़ज़ल

ऐसे खिलते हैं फ़लक पर ये सितारे शब के जिस तरह फूल हों सारे ये बहार-ए-शब के तेरी तस्वीर बना कर तिरी ज़ुल्फ़ों के लिए हमने काग़ज़ पे कई रंग…

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