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ग़ज़ल

ऐसे खिलते हैं फ़लक पर ये सितारे शब के
जिस तरह फूल हों सारे ये बहार-ए-शब के

तेरी तस्वीर बना कर तिरी ज़ुल्फ़ों के लिए
हमने काग़ज़ पे कई रंग उतारे शब के

वो मुसव्विर जो बनाता है सहर का चेहरा
उससे कहना कि कभी दर्द उभारे शब के

क्या किसी शख़्स की हिजरत में जली हैं रातें
क्यों शरारों से चमकते हैं सितारे शब के

ये तेरे हिज्र ने तोहफ़े में दिए हैं हमको
ये जो मासूम से रिश्ते हैं हमारे शब के

एक अरसे से हमें नींद न आयी “आशु”
उम्र इक काट दी हमने भी सहारे शब के

– आशु मिश्रा