मौत

फिर कल की तरह आज न होदाँतों से टकराते दाँत न होमन में भरी रुवासी न होहोंठों तक आये आँसू न होरोंगटे खड़े न होशब्दों में रूकावट न होकाँपते मेरे…

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छत की मुंडेरों तक

बर्फ के फाहे गिरते हैं जब, थोड़ा चित ठहरता है थोड़ा सा मन मचलता है जैसे कि, सूरज शाम में अपने दोस्तों को चाय की चुस्की के साथ बड़े ही…

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कालाघर

एक ऐसी जगह जहां काला रंग श्रेष्ठता का प्रतीक है,जहां काले रंग की महिलाओं के लिए पुरूष तरसते है। जहां मुझ अभागे को इसीलिए संगनी नहीं मिली क्योंकि इनके पैमाने…

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