सिर्फ तुम

आज ज़िक्र करती हूं मैं मेरे खत में..वो यादें वो शामें …जिनमें तेरे छत पर बैठे हम,हमारी बातें, वो ख़ुशनुमा रातें,हाथों में हाथ तुम्हारा साथ औरदूर से आती अज़ान की…

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मंजिल ही एक ठिकाना है

पग डगमग हो जाए लेकिनपथ पर चलते ही जाना हैथक चुके हुए कदमों से कहोमंजिल ही एक ठिकाना है। माँ और बताओ कितने कोसराहों से गुज़रते जाना हैपड़ गए हैं…

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कमरा और ज़िन्दगी

नींद के इंतजार में छत को तकते हुए उसकी ये रात भी पिछली कई रातों की तरह ऐसे ही बीत जाने वाली थी। ऐसा होता भी क्यों न ! उसने…

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