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सिर्फ तुम

आज ज़िक्र करती हूं मैं मेरे खत में
..वो यादें वो शामें …
जिनमें तेरे छत पर बैठे हम,
हमारी बातें, वो ख़ुशनुमा रातें,
हाथों में हाथ तुम्हारा साथ और
दूर से आती अज़ान की आवाज़.. और
तुम पर मेरी नज़रें,
मेरी नजरों में तुम्हारे डिंपल वाले गाल,
माथे पर बिखरे बाल और
और ढलता सूरज कहे
इश्क़ का रंग लाल…
इश्क़ में लाल होती मैं..मेरे ख़यालात …
और कान के पीछे बालों को समेटते तुम्हारे हाथ…
तुम्हारे हाथ वो एहसास और
बाहों में सिमटती मैं..मेरे जज़्बात,
और घर जाने की याद ..के साथ
नीचे से आती तुम्हारी मां की आवाज़ और..तुम्हारा चेहरा …
मेरे घर तक तुम्हारा पहरा और तुम ..सिर्फ तुम

-समिधा खरे ‘पंछी’