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मंजिल ही एक ठिकाना है

पग डगमग हो जाए लेकिन
पथ पर चलते ही जाना है
थक चुके हुए कदमों से कहो
मंजिल ही एक ठिकाना है।

माँ और बताओ कितने कोस
राहों से गुज़रते जाना है
पड़ गए हैं छाले पैरों में
अभी कितनी दूर हमें जाना है।

कई रातों से चल रहे हैं हम
मंजिल तक चलते जाना है
कोसो दूरी के बाद ही अब
मंजिल ही एक ठिकाना है।

चलते-चलते कहीं छाँव दिखे
थोड़ा सा ठहर अब जाना है
जब तक अपना ना गाँव दिखे
तब तक बस चलते जाना है।

-साक्षी सांकृत्यायन