अल्फ़ाज़

मैं जो भी लिखता हूँ नापता हैवो अल्फ़ाज़ अनाथ होते हैपर फिर भी सबसे वफादार होते हैक्योकि वो सब मैं तुम्हारे लिए लिखता हूँऔर जब उन लफ़्ज़ों को तुम्हारा नाम…

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आख़िर क्यों दर्द नहीं होता है ?

रेल की पटरी पर खून के छींटों वाली रोटी जब हिसाब मांगती है,पैर पर उकरे छाले जब दर्द की टीस मारते हैं,भूखे- बिलखते बच्चे जब तुमसे सवाल पूछते हैं ,आखिर…

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अनकही ख्वाहिशें

तुम नहीं मानती थी भगवान को,तुम कहती थी तुम्हें दफन होना है समंदर में।समंदर की लहरों में,तुम चाहती थी गोते लगाए तुम्हारी लाश,और तुम निवाला बनो मछलियों का। पर मेरे…

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