वजूद

मेरा अपना वजूद के जिसने ख़ुद को इक दरगाह बना ओढ़ लिया तुम्हारे इश्क़ को। मेरी सांसे खिलती हैं किसी जोगन के फ़ूल सी इस दरगाह पर अकसर महक जाते…

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यकीन नहीं होता

आज भी उतने ही गर्म व नर्म थे वो हाथरोते हुए उसने भी मेरे हाथ थाम रखे थेआसपास पूरी दुनिया चल रही थीबस एक टेबल पर लम्हें थमे हुए थे…

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