कारवां ए ज़िन्दगी

जिसे वो जान कहता था उसकी शादी होने वाली थी, उसने 2 दिन से खाना नहीं खाया था, वो रोज घर से दूर जाकर एक तालाब के किनारे अपनी प्रेमिका…

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रबिन्द्रनाथ टैगोर

मेरा शीश नवा दो अपनी, चरण-धूल के तल में,देव! डुबा दो अहंकार सब, मेरे आँसू-जल में,अपने को गौरव देने को, अपमानित करता अपने को,घेर स्वयं को घूम-घूम कर, मरता हूं…

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दोषी कौन

आज फिर मुझ पर ये आरोप लगा है,मैंने फिर किसी मनुष्य का शिकार किया है,मैं तो किसी जानवर का शिकार करने था तैयार,इतने में वो मनुष्य आ गया,जंगल से फल-फूल-लकड़ी…

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