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कारवां ए ज़िन्दगी

जिसे वो जान कहता था उसकी शादी होने वाली थी, उसने 2 दिन से खाना नहीं खाया था, वो रोज घर से दूर जाकर एक तालाब के किनारे अपनी प्रेमिका की यादों में गोते लगाता रहता था,
एक दिन बाबू जी की तबियत खराब थी, माँ ने उससे दवा लाने को कहा,
लेकिन वो अभागा अनसुना करते हुए उसी तालाब के किनारे पहुंच गया।
उसके दोस्त दौड़ते हुए आये ; कहा- बाबू जी की तबियत खराब है जल्दी चलो,
लेकिन जब तक वो घर पहुंचा तब तक बाबू जी दम तोड़ चुके थे।
और उसकी माँ रोते हुए चिल्ला रही थी कि उन्होंने 2 दिन से खाना नहीं खाया था।
सारे घर के उजाले का जिम्मा था बाबू जी पर,
माँ के आंचल में सुबक कर पश्चाताप करना चाहता था लेकिन उसकी हिम्मत जबाब दे गई और वो चक्कर खाके गिर पड़ा।?

कारवां ए ज़िन्दगी हसरतों के सिवा कुछ नहीं,
ये किया नहीं, वो हुआ नहीं,
ये मिला नहीं, वो रहा नहीं।?

आकाश सिकरवार