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रबिन्द्रनाथ टैगोर

मेरा शीश नवा दो अपनी, चरण-धूल के तल में,
देव! डुबा दो अहंकार सब, मेरे आँसू-जल में,
अपने को गौरव देने को, अपमानित करता अपने को,
घेर स्वयं को घूम-घूम कर, मरता हूं पल-पल में।

देव! डुबा दो अहंकार सब, मेरे आँसू-जल में,
अपने कामों में न करूं मैं, आत्म-प्रचार प्रभो,
अपनी ही इच्छा मेरे, जीवन में पूर्ण करो।

मुझको अपनी चरम शांति दो, प्राणों में वह परम कांति हो,
आप खड़े हो मुझे ओट दें, हृदय-कमल के दल में,
देव! डुबा दो अहंकार सब, मेरे आँसू-जल में।

रबिन्द्रनाथ टैगोर