डर

कितना डरते हैं, लोग यहाँ….कुछ पुरुष भी डरते हैं,कुछ औरतें भी……बच्चे और तो और जानवर भी डरते हैं…..सुना है पेड़-पौधे भी डरते हैं….?क्यूँ डरते हैं…?ऐसी कोई वजह भी नहीं डरने…

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तुम्हारी नाराज़गी

तुम्हारा नाराज़ होना लाज़िमी हैजब तुम्हें बोलने की ज़रूरत पड़जाए,जब चेहरा पढ़कर हम समझ न पाएं,तो तुम्हारा नाराज़ होना लाज़िमी है। तुमको छूकर विस्मित न हो जाएं,तुमको देखकर नज़रें न…

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अधूरी ख्वाहिश

तुम वो किताब हो, जिसे मैं पढ़ तो सकता हूँपर सीने से लगाकर सो नहीं सकता। वो ख़्वाब हो जिसे हर वक्त जीता हूँपर पता है मुझे वो पूरा हो…

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