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तुम्हारी नाराज़गी

तुम्हारा नाराज़ होना लाज़िमी है
जब तुम्हें बोलने की ज़रूरत पड़
जाए,
जब चेहरा पढ़कर हम समझ न पाएं,
तो तुम्हारा नाराज़ होना लाज़िमी है।

तुमको छूकर विस्मित न हो जाएं,
तुमको देखकर नज़रें न टिकाएं,
और तुम्हारी बातों पर संग न खिलखिलाएं,
तो तुम्हारा नाराज़ होना लाज़िमी है.

-ऋषिकांत