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अधूरी ख्वाहिश

तुम वो किताब हो, जिसे मैं पढ़ तो सकता हूँ
पर सीने से लगाकर सो नहीं सकता।

वो ख़्वाब हो जिसे हर वक्त जीता हूँ
पर पता है मुझे वो पूरा हो नहीं सकता।

भले कभी पा सकूँ या नहीं भी शायद
पर हाँ, मैं तुझे खो भी नहीं सकता।

या यूँ कहूँ कि वो ख़ुदा हो कि मैं तो जिसका हूँ
पर वो मेरा, सिर्फ़ मेरा कभी हो नहीं सकता।

ये तेरी बेज़ारी नहीं है, ये कोई नाइंसाफ़ी भी नहीं है
पर सच कहूँ, इतना मेरे लिए काफी भी नहीं है।

ख़ैर छोड़ो, ये बातें फिर कभी और करूँगा,
तुम पर भी शायद मैं कभी लिख सकूँगा|

  • असीम श्रीवास्तव