तुम्हे इस से क्या?

हाँ मैं अपने खुद के बादल बनाता हूँ मैं शौक़ से सीने में आग सुलगाता हूँ तुम्हें इससे क्या ? मैं झूठ मुठ का मुस्कुराता हूँ, ख़ाली हसीं किस्से बनाता…

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आईने की बिंदी

कुछ तो बात होती है उस बिंदी में। जो हमेशा उस आईने पे लगी रहती है।। एक प्यार, एक माँ का अहसास सा दिलाती है वो बिंदी एक परित्याग का…

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