You are currently viewing ऐ जिंदगी

ऐ जिंदगी

यूँ तो कोई आवाज़ न देगा,
हो सके तो रूक कुछ देर जिंदगी।
पनाह ले पीपल, नीम, कदम के तले,
बचपन, जवानी के सारे पड़ाव तूने छोड़ दिए।
आ अब मेरी बुजुर्गियत के साथ थोड़ा रूक ले,
थमने को नही कहूंगा तुम रूठ जाओगी।
बस कल्पतरु सा ये विशाल जीवन वृक्ष रूक के देखने दे,
सब छूट गया कुछ धुंधला सा परत हटा के देखने दे।
सरमाया साया भी उलट के साथ नहीं चलता आजकल,
तू तो थोड़ा आस पास करीब में चल सबर कर।
बड़ी बेगैरत सा बरताव रखती हो चुन्नी चाची जैसा,
चुन्नी चाची के मर्तबान में रखे खट्टे कच्चे आम के अचार जैसा।
खूब तोड़े मर्तबान, खूब खाये अचार तनक सी उमर में,
अब………………
वो छत ही ढह गई जो बुलंद थी।
उन्होंने खुदा से दोस्ती निभाई, मोड़े ने बीवी से,
और हम धक हार के अकेले रह गए।
देख फिर भी कंधे से कंधा मिला के साथ तेरे चल रहे हैं,
वो खुदा को मना लें तो हम भी उनके पास चलें।
तब तक ऐ जिंदगी थोड़ा रूक रूक के चल,
कि रात तन्हा होने में अभी कुछ तो पल बाकी है।

– सचिन बिल्लोरे