कीकर

आजकल अक्सर होता है, मैं बैठ जाता हूँ। मैं बैठ जाता हूँ टिकाकर, सर अपना दीवार से। दीवार पर सर ठोक कर के, याद करता हूँ, उन गुलों को जिनसे…

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ज़िंदगी

कहने को तो बड़ी आसान है पर न जाने क्या-क्या रंग दिखाती है ज़िंदगी, एक पल में हँसाती है दूसरे पल में रुलाती है जिंदगी, कभी गिरा कर उठाती है…

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हकदार

एक रोज जब मैं मर जाऊँगा, मेरी मौत के बाद जब मुझसे सवाल किए जाएँगे, मेरे अच्छाइयों और बुराइयों के, मेरे पाप और पुण्य के, मेरे गुनाह मुझे गिनाए जाएँगे…

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