ग़ज़ल

रूह तक आ कि मुझे इसका सहारा है बहुत,,,.. जिस्म मत छेड़ मुझे जिस्म ने मारा है बहुत..!! चाँद की किसको तलब है कि यहाँ तारीकी,,.. इस क़दर है कि…

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दर्द

दर्द जब शब्दों में बहता है, गीत बनता है, कविता में उभरता है, कहानी में उतरता है, अपना अंत ढूंढ़ता है। दर्द जब आँखों से छलकता है समुद्र बनता है…

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बूढ़ा दरख्त

बारिश की बेरुखी और चिलचिलाती धूप में वो बूढ़ा दरख्त सूख गया है साखों पर बने घोंसले उजड़ गए उजड़े घोंसलों के बाशिन्दे/परिन्दे नए ठिकाने/आबाद दरख्त की तलाश में उड़…

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