हम-तुम

कम से कम अब जिसे मिलेंगे हरे-भरे होंगे, ठीक हुआ जो अलग हो गए हम-तुम इस सावन। अगर बिछड़ते हम पतझड़ में कुछ भी न पाते। स्वप्न टूट सारे सूखे…

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राग रामेश्वर

तुम उसका नाम पूछती हो कभी कभी रोज रोज और मैं चुप रहता हूं टाल देता हूं हमेशा हर रोज लेकिन मैं तुम्हें बताऊंगा कब? जब! जब सावन के बाद…

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