ग़ज़ल

ख़ुदा ने तो सब्र आज़माया मेरा मगर तुमने क्यों दिल दुखाया मेरा छुपा कर हुआ मुझको ढ़हाने का काम सो मलबा भी अंदर गिराया मेरा हरेक शै थी अपनी जगह…

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मिलो हम से

मिलो हम से किसी उगती हुई सुबह में या ढलती शाम में आकर चमकती रात के पिछले पहर किसी खामोश साअत में निगाहें सो रही हों जब समाअतें थक चुकी…

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अच्छा आदमी

हमारे पैसे उन शराबों में गए जिनसे नशा नहीं हुआ मैं जब तुम्हारे शहर में आया बारिश का मौसम जा चुका था मेरी जेब से पैसे तब चुराए गए जब…

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