आदमी

आदमी के फ़लसफ़े को जी रहा है आदमी आदमी को देखकर यह सोचता है आदमी इक शिकन माथे पे आयी और माथा हिल गया गर जिया है इस तरह तो…

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वो नाम

रात बैचनी से उठ गया एक कविता लिखी बिना सुर, बिना लय बिना किसी खूबसूरती के कोई अर्थ नहीं था उसमें सोचा फाड़ दूं पन्ने को फिर सीने लगाकर सो…

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मेरा जहां

बदन में कुछ शरारे हैं, रहेंगे तसव्वुर में सितारे हैं , रहेंगे रहेगी पांव में आवारगी भी जो घर हमने संवारे हैं, रहेंगे यहां से आसमां अच्छा लगा था ये…

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