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वो नाम

रात बैचनी से उठ गया
एक कविता लिखी
बिना सुर, बिना लय
बिना किसी खूबसूरती के
कोई अर्थ नहीं था उसमें
सोचा फाड़ दूं पन्ने को
फिर सीने लगाकर सो गया
एक नाम था उसमें
सुबह कविता गायब हो गई
बस नाम छप गया
वह खुशी जो मेरे बाहों में थी
मैं फिर लिपट कर सो गया।

-रजत अभिनय सिंह