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दिल रूठ गया

मशरूफ थी अपने आपमें

पर सामने वो शीशा टूट गया

कितने ही सपने थे उस शीशे में

वह अब टुकड़ों में छूट गया

बंट गए ख़याल एक एक करके

लावा अंदर का फूट गया

बीज बोये थे कई ख़्वाबों के मैंने

कोई परिंदा आकर लूट गया

छोड़ दिया है आजकल मैंने सब

जब से दिल खुद से रूठ गया !!

-कृति वर्मा