मुक्तक

खनक के शोर में खुद का कभी सानी नहीं बेचा सुरों की चाशनी में लफ्ज़ का मानी नहीं बेचा कठिन इस दौर में जब गर्व का कारण ही बिकना हो…

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मुक्तक

नयन में घोर निद्रा है, फलक पर घर बनाना है जलाकर ज्योति जय की अब, स्वप्न को दृढ़ बनाना है जिजीविषा का हो गर भाव, मृत्यु हार जाती है तमस…

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