फिर कभी

यारों सुनाऊंगा और शेर, फिर कभी। अभी मुझे हो रही है देर, फिर कभी।। आज ज़रा जल्दी में हूँ, फैसला करो। करते रहना ये हेर-फेर, फिर कभी।। ता-सिन ज़िन्दगी कहती…

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मुस्कराहट

कई मुद्दतों बाद, एक दोस्त मिला आज वो मुस्करा रहा था मैं भी मुस्करा रहा था हम दोनो मुस्करा रहे थे मुस्करा रहे थे हम दोनो यह जतलाने के लिये…

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ग़ज़ल

कितनी ख़मोशी कितना शोर,,.. इक खिड़की के दोनों ओर..!! हाँ मैं अज़ल से झूठा हूँ,,.. मेरी बात पे कैसा ज़ोर..!! हम सब उल्टे लटके हैं,,.. उसके हाथों में है डोर..!!…

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