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मुस्कराहट

कई मुद्दतों बाद,
एक दोस्त मिला आज
वो मुस्करा रहा था
मैं भी मुस्करा रहा था
हम दोनो मुस्करा रहे थे
मुस्करा रहे थे हम दोनो
यह जतलाने के लिये
कि देखो
मुस्करा रहे हैं हम !
मुस्कुराना ज़रूरी था तो मुस्करा रहे थे

अपनी मुस्कराहट को मैं समझता था
मुस्कराते हुये सोच रहा था
सोचते हुये डर रहा था
डरते हुये मुस्करा रहा था
और युं ही मुस्कराते हुये
मुझे हुआ एक शुबहा..

‘मेरा दोस्त, कहीं सच में तो नहीं मुस्करा रहा !’

– विपुल शुक्ला

This Post Has One Comment

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