एक नन्ही सी चिड़िया

कटा के ये पर आसमां ढूंढ़ती है इक नन्ही सी चिड़िया जहां ढूंढती है घटाओ के झोंको की भूखी थी वो अब पिंजरों में बाकी हवा ढूंढ़ती है हर ज़र्रे…

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ग़ज़ल

ऐसी भी क्या उड़ी है ख़बर देख कर मुझे सब फेरने लगे हैं नज़र देख कर मुझे क्यों छट नहीं रहा है सियह रात का धुआँ क्यों मुंह छुपा रही…

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उनविंश

उनविंश का है यह प्रथम चरणकरती है लेखिनी अमर वरणयह बीत चला है समय देखशायद बदलेगी भाग्यरेखअलसाई किस्मत जागेगीरजनी भी तम संग भागेगीजो बीत चुका वह कब लौटाकरते ही हैं…

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