अधूरी सी मैं

मैंने कब मांगा अमरत्व तुमसे…… मैंने कब चाहा लफ़्ज़ों में ढालो मुझको और लिखो मनचाहा तुम ।। मैंने कब कहा कैनवस पर उकेरो मुझ को और भरो रंग अपनी मर्ज़ी…

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अप्रैल तुम फिर कभी मत आना

अपने कॉलेज के दिनों में मार्च के बाद गाँव से पटना आने पर बस से उतरते ही गला सूखने लगता था मैंने अप्रैल को कभी पसंद नहीं किया मैंने यही…

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बहार आ रही है

फ़िज़ा खुशनुमा है ज़मीं गा रही है, विदा कर खिज़ा को बहार आ रही हैं खेत में सरसों की बालियां सैकड़ों फिर, तिरी बाली क्यों मुझको याद आ रही हैं…

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