ग़ज़ल

जब हम उनका नाम पुकारा करते हैं, सब कहते हैं शेर सुनाया करते हैं। सहराओं में फूल खिलाया करते हैं, आशिक़ है ये जाने क्या क्या करते हैं। मंदिर मस्ज़िद…

Continue Readingग़ज़ल

धुआं

कितनी पास हो तुम बिल्कुल करीब लेकिन पता है तुम्हें जिस समाज को मैं धुंए में उड़ता हूं बस उसी वजह से दूर हो तुम कायर नहीं हूं मैं बस…

Continue Readingधुआं

क़िस्मत का लिखा…

ग़ज़ब की नाच रही थी वो। उसके शरीर के पोर पोर में जैसे स्प्रिंग फिट था। पैरों की थिरकन में बिजली समाई थी। जिस्म का हर पोर पोर अपने अलग…

Continue Readingक़िस्मत का लिखा…

End of content

No more pages to load