बाशिंदा

सवाल है, क्या पसंदीदा मुझमें जवाब, मेरा अहं शर्मिंदा मुझमें… बस्ता था मुझमें, वो कबका छोड़ गया रहता है कोई और बाशिन्दा मुझमें.. बंद है, तक़दीर के दरवाजे फिर भी…

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मांझी

हवाओं ने किया तूफान का इशारा है न साथ है मांझी न पास में किनारा है। बस कोई है जिसे अपना कह सकें वो महबूब नहीं, बस जीने का सहारा…

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काश

ख़ुद से बचकर निकल गए होते अपने दिन भी बदल गए होते हमको कोई कमी नहीं थी वहां हम अगर सर के बल गए होते ख़ुद से कुछ राबता रहा…

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