हर एक तुम्हारी गुस्ताखी को,
गुस्ताखी लिखना चाहा,
झूठे सच्चे लम्हों में
संग दर्पण में दिखना चाहा,
ख़ामोशी जब जब तोड़ी हमने,
हम हुए हमेशा बदनाम सही,
तुम सच्ची सच्ची बातों वाली,
हम झूठे पैगाम सही,
महफिल महफ़िल मुस्काकर
लो अपनी वो दुनिया छोड़ चले,
बस एक तुम्हारी जीत के खातिर
हम अपनों से हार चले |