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वक़्त,किस्मत और तुम

वक़्त बुज़दिल सा
पीछे से हमला करता है मुझ पर
और छोड़ जाता है यूँ अधमरा सा

किस्मत ने भी धोखा देने की कोशिश की
और हर बार ज़ख्मी करके रिसने वाले घाव दिए

सिर्फ़ तुम पर विश्वास आकर ठहरा था मेरा
लेकिन अब वो हर रोज़ टूट रहा है

अधमरा और ज़ख्मी मैं,
अब और कुछ बचा नही पास मेरे
बेहतर होता मुझे मार देना तुम सबके लिए
क्योंकि अगर मैं ज़िंदा रहा और
अपने जख्मों को भर पाया
खुद के विश्वास को टूटने से बचा पाया

फिर मैं हमला पीछे से नही
सामने से करूँगा और
ज़ख्म भी गहरे दूंगा,

हाँ इक बात और याद रखना
कि मैं अगर अपने आप से जीत गया
तो वक़्त, किस्मत और तुम्हे;
हराना मुझे बखूबी आता है।

-सुलभ सिंह