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माँ

बहुत दुखद है माँ….
तेरी इच्छाओं का मर जाना
इमारत बनाने के लिए
खुद का नींव बन जाना
स्वयं अपने पंख नोंच के
उन्हें बच्चों को पहनाना
बड़ी बड़ी जरूरतों को हमसे
छिपा के हंसी में छुपाना

बहुत दुखद है माँ….
तेरा आँसू पी जाना
लीपते आँगन में हाथ की
लकीरो का मिट जाना
चूल्हे की आग में सपनों का
राख हो जाना
हर दर्द को नियति मान कर
तेरा उसे गले लगाना
और फिर मेरी मुस्कान में
अपनी सारी तकलीफ भूल जाना

बहुत कठिन है माँ…..
तेरा माँ बन जाना
धुँए की ओट में
तेरा अश्रुओं को छिपाना
प्यार के दो बोल के लिए
पूरा जीवन न्यौछावर कर जाना
घर को घर बनाने के बाद भी
वो तेरा घर ना कहलाना
बचपन का आँगन छोड़
अनजाने आँगन में बस जाना

बहुत दुखद है माँ….
तेरा पल में जीवन बदल जाना
शिक्षित बच्चों के सामने
खुद का गँवार बन जाना
हर झिड़की पर भी होंठो से
भर भर आशीष देती जाना
आखिरी साँस तक बच्चों पर
भरपूर ममता बरसाना
सबकी आँखो में अपने लिए
थोडा सम्मान तलाशना

बहुत दुखद है माँ……
तेरी ममता को ना पहचानना
सब कुछ खो कर भी
कुछ ना हाथ में आना
सब कुछ दे कर भी
खाली हाथ चले जाना
बहुत दुखद है माँ……..
तेरी इच्छाओं का मर जाना……..

– गीतांजलि गिरवाल