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यकीन नहीं होता

आज भी उतने ही गर्म व नर्म थे वो हाथ
रोते हुए उसने भी मेरे हाथ थाम रखे थे
आसपास पूरी दुनिया चल रही थी
बस एक टेबल पर लम्हें थमे हुए थे

यक़ीन नहीं होता
कि
अब उससे दोबारा मुलाक़ात नहीं होगी
साथ में 1 टेबल पर कोई चाय नहीं होगी

घण्टों चलते थे झगड़े, होती थीं शिक़ायतें हज़ार
अब रूठने मनाने जैसी कोई बात नहीं होगी
…उससे दोबारा मुलाक़ात नहीं होगी

ज़िन्दगीभर साथ निभाने का वादा करने वाला
अपनी जान मेरी मुस्कान के नाम करने वाला
मेरे ख़्वाबों का ख़याल सुबह-शाम करने वाला

आंसुओ से भरी अपनी दो आंखें छिपाए
उन बाहों में अब कोई गहरी सांस नहीं होगी
यक़ीन नहीं होता…

अनुजा विद्या श्रीवास्तव