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चलो शुक्र है

चलो शुक्र है!
अब
दिवाली पर लोग भर-भर के घर नहीं जाएंगे,

आप ख़ुद को किसी मेट्रो स्टेशन पर
खचाखच भीड़ में तन्हा खड़ा नहीं पाएंगे

अब स्टेशन पर हर तरफ़ पैर रखने की जगह होगी
पर मुसाफ़िर एक भी नहीं!

अब नहीं होंगे अलग अलग लोगों के लेट हो जाने के किस्से
या पिछले दिन भीड़ के चलते गाड़ी छूट जाने का ग़म!

ख़ैर अब कुछ भी तो नहीं है
वो चलते-चलते पकड़ लेने को तुम्हारा हाथ..

न है तुम्हारी चाल को कवर कर लेने वाली रफ़्तार!

अब नहीं है सर रखने के लिए कंधा तुम्हारा
न बाकी है तुम्हें देखते रहने से दिल को मिलने वाली तसल्ली!

सोचा नहीं था,
हैंडवॉश का पिचपिच, सैनेटाइज़र और मास्क भी
ज़िन्दगी में ज़िन्दगी की जगह ले सकते हैं!

  • अनुजा विद्या श्रीवास्तव