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रिपीट मोड

ट्रेन अपने समय से
तक़रीबन बीस मिनट लेट थी
स्टेशन पहुँचकर मैंने टिकट ली
और जनरल डिब्बे जिस ओर आते हैं
उस ओर चल पड़ा,
जब कभी गाँव आता हूँ
उम्मीद और आशाओं से भरी निगाहें
मुझे देखती रहती हैं
अंदर तक एक तूफ़ान पैदा कर देती है,
मैं सहम जाता हूँ
सोचता हूँ
मै इन उम्मीदों पर खरा उतरूंगा या नही
ये जो आँखे मुझमे
अपनी रोशनी तलाश कर रही हैं
एक डर हर बार उमड़ आता है

लेकिन
बार बार के इस डर से
उबरने का रास्ता
अब मैंने खोज ही लिया है,
जब भी इस तरह की
चिंता सताने लगती है
मैं रफ़ी के गाये गाने
“मैं ज़िन्दगी का साथ
निभाता चला गया”
को रिपीट मोड पर डालता हूँ
और लग जाता हूँ
अपने और उनके
सपनों को पाने की तलाश में …

-पंकज कसरादे