हुज़ूर आपको ये दिल ये जान देते हैं
ये तोहफ़े आपके शायान ए शान देते हैं
ये अश्क ए हिज्र बड़े इम्तेहान देते हैं
मगर ये आईने सच्चा बयान देते हैं
अगर ये अश्क मेरे पत्थरों प गिर जाएं
जो भर न पाएं वो गहरे निशान देते हैं
अब इसको घर जो बना दो तो कोई बात बने
तेरे हुज़ूर हम अपना मकान देते हैं
सर ए वरक़ उसी ज़ालिम का नाम लिख कर हम
बड़े सुकून से हर इम्तेहान देते हैं
ज़मीन ए दिल प उगाई थी फ़स्ल ए इश्क़ कभी
सो आज तक हम उसी का लगान देते हैं
ख़्याल जाता है जब उस गली तक अये साक़ी
हमारा साथ सभी आसमान देते हैं
– अहमद अली खान