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औरत

कितनी खूबसूरती से वो तराशी गयी है
जैसे मृगनयनी अमावस की कालिमा को साधे हुई है
काले रेशमी केशुओं का ये मेल कैसा
जैसे समंदर की लहरें आँचल समेटती, लहराती हुई है
होंठ उसके कमल की पंखुड़ी से
सूरज की लालिमा जैसे उसे ढांके हुई है
कितनी खूबसूरती से वो तराशी गयी है।

श्यामल वर्ण साँझ की ठंडक सा है
गौर वर्ण रुपी सूरज के ओज सी मुस्कुराती रही है
सादगी की वो मूरत समर्पण, दया के श्रृंगार से लदी
सदियों से हर रूप में साथ निभाती रही है
कितनी खूबसूरती से वो तराशी गयी है।

– इरीना बाघेल