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पूँजीवाद

याद है……
मेरे छूने से ही तो तू बनी थी
और आज जब बनकर तैयार हो गई
तो मैं तेरे लिए एकदम से अछूत हो गया
क्यों?

भूल गई……
तेरी नींव को अपने पसीने से नहलाया
ईंटो को थककर गरमाई सांसो से तपाया
इसके बावजूद तूने आज यह दिन दिखाया
क्यों?

जानती है……
तू आज यहां मेरी बदौलत खड़ी है
मुझसे पहले तेरा नामोनिशान नही था
खुद को खड़ा करने वाले को खदेड़ रही है।
क्यों?

इमारत बोली,
मजदूर और इमारत का रिश्ता
तब तक बना रहता है
जब तक इमारत बन रही होती है
माफ़ करना, लेकिन यही पूंजीवाद है।

– रोशन सास्तिक