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ग़ज़ल

आग लगे तो है सदाक़त,पानी चाहिए।
लेकिन पानी को फिर आग,बुझानी चाहिए।।

तयशुदा है मर्ग मगर ये हसरत देखिये।
हर किसी को जीस्त जावेदानी चाहिए।।

अब किसी सीने में कोई आग नहीं दिखती।
हमें “दुष्यंत” कि ख़ातिर जलानी चाहिए।।

कुछ बातों को भूल पाना मुश्किल है लेकिन।
कभी-कभी कुछ बातें भूल जानी चाहिए।।

क्या निस्बत है यार अनोखा, दरया-बादल का।
इसको उससे, उसको इससे पानी चाहिए।।

कितने सारे लफ़्ज़ हैं जिनके मानी बदले गए।
कितने सारे लफ़्ज़ हैं जिनको मानी चाहिए।।

अलहदा है काफ़ी “जाँ” हम दोनों का किरदार।
हम दोनों को “हम दोनों” सी कहानी चाहिए।।

– प्रद्दुम्न चौरे