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फ़िक्र

इक रोज़ गुडगाँव जाने के लिए शेयरिंग कैब में बैठा…
कुछ दूर चला ही था कि
माँ -पापा की उम्र के अंकल आंटी ने कैब रुकवाई
और साथ बैठ गए…
इधर ड्राईवर ने कैब की स्पीड बढाई और
उधर एफएम में भी नए जमाने का
तड़क भड़क वाला गाना बजने लगा…

इससे पहले कि मैं तहज़ीब की फ़िक्र करते हुए
ड्राईवर से गाना बदलने को कहता,
बगल में बैठे अंकल उस गाने को गुनगुनाने लगे
और आंटी उन्हें देखकर मुस्कुराने लगीं…

उन दोनों को देखकर;
मेरा मन मुझपे ही हँसने लगा था
कितना फ़र्क है न दो पीढियों का
मैं तहज़ीब की फ़िक्र कर रहा था और वो अपने प्यार की |

– पंकज जैन