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प्रिय मिलन

ठहरती ही नहीं वह
आती है
धीरे से कान में कह
चली जाती है
उसका कहा सोचना
और देखना
रोमांचित करता है
कर देता है तरल
बहती देह
अठखेलियां करती
कराती मिलन
प्रिय से

  • विनोद गुर्जर