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ख़्याल

मेले में घूमते हुए अचानक
मेरी नज़र चावल के दाने वाले लॉकेट पर पड़ी,
कभी मैंने भी तुम्हारा नाम लिखवाया था;
चावल के दानों पर इसी तरह ……

उन दानों को देखकर ख़्याल आ रहे थे तुम्हारे;
बिल्कुल बिन बुलाये मेहमान के जैसे

ये ख्याल तुम्हारे क़रीब होने का एहसास करवाते हैं मुझे
क़रीब इसलिए; क्योंकि तुम्हीं ने तो बताया था
कि साथ रहना ही क़रीब होना नही होता………….

जब ख्यालों के मेहमान आ ही गये तो क्या करें खिदमत करनी ही पड़ी ……….

उनके लिए मैंने आँखों को जैसे ही बंद किया
कुछ बूँदे यूँ गिरी मेरे अंतर्मन में,
कि आने वाले सारे ख़्याल भीग गये……

– शुभम साहू