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सूरज का पता

दिल का दर्द आंखों में उतर आये
तो कोई छुपाये कैसे ?
जिसने पिये न हो दर्द के समुंदर
उसे कोई खुदा बताये तो बताये कैसे

लोग कहते हैं सफर के अकड़ में
हमने भुला दिये हैं
मंज़िलों की ओर जाते रास्तों के बरगद
जो राहों में ही बन बैठे हों बरगद
उनकी तालीम,मंज़िल तक कोई ले जाये कैसे

होती नहीं सबकी मंज़िल एक जैसी
और सफ़र के रास्तें समान
मंज़िल के आगे भी होते हैं कई मंज़िल के निशान
ऊँचे मकान वालों को ये बात कोई बताये कैसे

हमने भी दो पल ठहर कर पूछ लिया
उनसे मंज़िल का पता ,पर
जिसने देखी हो किरणें खिड़की से छनकर आते हुए सदा,
वो सूरज का पता हमें बताये तो बताये कैसे|

– रोमा रागिनी