You are currently viewing उसकी दुनिया

उसकी दुनिया

ऑफिस के एक कोने में
कुछ चंद जिस्मों के बाद
एक तरफ उसकी भी कुर्सी है
देखती, सुनती, टटोल कर रखती
सबको समझती है
चुप रहती है अक्सर
आंखों से बोलती है कभी कभी
पीछे बैठे बैठे वो
न जाने क्या क्या गुनती है
उसकी अपनी दुनिया है
कुर्सी है, बस कुर्सी
उसका कोई नाम नहीं है…!

– अविनाश श्रीवास्तव