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लिबास

लिबास तेरे नाम का
ओढ़ चुनर तेरे नाम का, बन गया मैं फकीर
फिरता रहा, फिर रहा हूँ नगर-नगर डगर डगर
जब से बना है तू मेरी तकदीर
जिक्र तेरा जेहन में भी तू
और किसी का दस्तक कहां जिंदगी के महल में भी तू
तू तकता रहा बाट जोहता रहा
मै मिसरी की तरह घुल गई
तू मुझ में है लिबास सा लिपटा
सच सा
अनछुआ सा अन्नत तक
एक अन्नत युग तक..

– कामिनी कुमारी दास