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जानती हो तुम

जानती हो तुम
इश्क की रहगुजर में
नींद की अनुकंपा नहीं होती
होती हैं तो बस
दुनिया की नफरतें
बिन बुलाई आफतें
और अक्ल की रुसवाई
कहीं कोई सुनवाई नहीं
हर तरफ बस फैसला करना होता है
तुम्हारा, साथ जीतने का
जीवनपर्यंत

अकेले सुनसान रास्तों पर
गुजरती हवा की तरुणाई
बस एक सुर में
तुम्हारा नाम लेते चलती है
और वो आवाजें
मधुर से और मधुरतम
होती जाती हैं
और ये लयबद्ध संगीत
मुझे तुमसे संबद्ध रखता है

जानती हो तुम
इश्क की रहगुजर में
दिशाएं याद रहती हैं
क्योंकि उनमें से एक
तुम तक जाती है
लेकिन
धूप-छाँव, रात-दिन
समतल और उखड़े रास्ते नहीं
बस चलता चला जाता हूँ

जानती हो तुम
इश्क की रहगुजर में
किसी दृष्टि की अनुशंसा नहीं होती
बस होती है
तो तुम्हारी आँखों से
निकलती रोशनी
जिसमें इंद्रधनुषी रंग हैं
जो मेरे विश्वास की दीवार का
समय-समय पर
रंग-रोगन करते हैं
और मेरे अस्तित्व को
नवीनतम बनाए रखते हैं।

– सौरभ चंद्र पाण्डे