You are currently viewing वो बूढ़ा इंसान

वो बूढ़ा इंसान

अक्सर ही सत्य और अहिंसा की बातें सुनने जानने बोलने के दौरान
हमारे अंदर कहीं पर एक बूढ़ा इंसान आ जाता है..
खादी की धोती पहने आँखों पर एक गोल चश्मा लगाये

लाठी टेकते हुए चलता हुआ बूढ़ा मेरे अंदर भी आया था,
आज ही के दिन तकरीबन 5-6 साल पहले गाँव के स्कूल में गाँधी जयंती पर

लेकिन जिंदगी की तेज रफ्तार और वक्त की पैनी धार के बीच
वो कहीं खो सा गया था
ऐसा नहीं है कि मैंने उसे ढूंढने की कोशिश नहीं की
या कहीं उसे तलाशा नहीं, पर वो कहीं मिला नहीं

फिर अचानक एक दिन वो मुझे दिखा
एक 6 साल के मासूम बच्चे में
जब उसने पापा से मिला वो इकलौता पांच रुपये का सिक्का
लाचार भिखारी के कटोरे में डाल दिया

वो मुझे फिर नजर आया
जब एक नौजवान ने अचानक अपनी गाड़ी रोककर
सड़क पर गिरी पॉलीथिन उठाई
और उसे कूड़ेदान के हवाले कर दिया
आप यकीन मानिए .. वो मुझे एक बार फिर से नजर आया
जब एक अफसर ने रिश्वत ठुकराते हुए
अपने अंदर के इंसान को जिंदा रखा

अब वो मुझे दिखने लगा है
बस जरूरत थी तो अपने अंदर छुपे उस बूढ़े को पहचानने की.

-पंकज कसरादे