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रावण

रावण से भयभीत नही हूँ
धर्म यहाँ राजनीति बना है
चक्रव्यूह ऐसा है जिसको
अभिमन्यु भी तोड़ न पाये
रावण तो पंडित ज्ञानी था
वो व्यर्थ बना अभिमानी था

यहाँ धरती माँ की गोदी पर
कपटी अत्याचारी हैं कितने
जिन्हें मारने अम्बर से
उतरेगें राम कृष्ण कितने

यहाँ राजनीति का हर चेहरा
रावण से भी ज्यादा जहरीला
क्यों रावण को मार गिराने में
हम रुचिकर इतना होते हैं
मैं नमन करुं उस रावण को
सीता का जिसने मान किया

यहाँ कदम कदम पर कितने हैं
जो नारी का मर्दन करते हैं
राम आपको सूचित हो
यहाँ नारी रोज ही मरती है
दहेज प्रथा कभी शील हनन
दंश रोज ही सहती है
आओगे राम क्या फिर से तुम
मर्यादा उसकी बचाओगे
या पुतला फूंकोगे उस पुतले का
नारी का सम्मान जलाओगे |

– श्वेता पांडेय