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रात

वो अक्सर कहा करती थी
उसे रात में अकेले डर लगता है
वो मानती थी कि भूत होते है और
भूत के उलटे पैर भी,
अपने कमरे की बालकनी से बाहर झांकने पर
स्ट्रीट लाइट की रौशनी में पेड़ की झूलती
काली छाया देखकर वो चीखने लग जाती थी,
रात उसे पसंद थी तो केवल इसलिए कि
भूत के डर से उसे नींद आ जाया करती थी।
और इसके विपरीत,
मुझे रात से बेहद मोहब्बत थी,
और नींद से कभी अपनी बनी ही नहीं,
सारी रात कभी किताबों को पढ़ते हुए तो
कभी गीत सुनते या ख्वाबों के छल्ले बनाती हुए गुज़री।
हाँ कभी कभी उसका फ़ोन ज़रूर आ जाता था उन रातों के दरमियां
जब वो किसी चीज़ से डर कर सहम जाया करती थी।
लेकिन अब ऐसा नही रहा,
काफ़ी समय बाद उसका आज फिर फोन आया था
कह रही थी, उसे भी रात से मोहब्बत हो गयी है,
लेकिन मैंने ये कहकर फ़ोन रख दिया कि अब
मुझे सुबह सुकून देने लगी है।

-पंकज कसरादे